सीमाएँ – लिन अंगर
Post Views: 161 लिन अंगर (अनुवाद- दिनेश दधीचि) तुम्हारे गिर्द नहीं घूमता है ब्रह्माण्ड. अंतरिक्ष की नृत्यशाला में घूमते हुए ये ग्रह और सितारे तुम्हारे लघु जीवन से बिलकुल बाहर
Post Views: 161 लिन अंगर (अनुवाद- दिनेश दधीचि) तुम्हारे गिर्द नहीं घूमता है ब्रह्माण्ड. अंतरिक्ष की नृत्यशाला में घूमते हुए ये ग्रह और सितारे तुम्हारे लघु जीवन से बिलकुल बाहर
Post Views: 150 ग़ज़ल कौन बस्ती में मोजिज़ा गर है, हौंसला किस में मुझ से बढ़ कर है। चैन से बैठने नहीं देता, मुझ में बिफरा हुआ समन्दर है।
Continue readingकौन बस्ती में मोजिज़ा गर है -बलबीर सिंह राठी
Post Views: 197 ग़ज़ल कौन कहता है कि तुझको हर खुशी मिल जाएगी, हां मगर इस राह में मंजि़ल नई मिल जाएगी। अपनी राहों में अंधेरा तो यक़ीनन है मगर,
Continue readingकौन कहता है कि तुझको हर खुशी मिल जाएगी- बलबीर सिंह राठी
Post Views: 221 एड्मंड बर्क (1729-1797) अनुवाद दिनेश दधीचि आईने में जब मैं देखूं क्या दिखता है उसमें मुझको? एक शख़्स लगता अजीब-सा मैं तो कभी नहीं हो सकता। ज़ाहिर
Post Views: 203 ग़ज़ल जिनकी नज़रों में थे रास्ते और भी, जाने क्यों वो भटकते गये और भी। मैं ही वाक़िफ़ था राहों के हर मोड़ से, मैं जिधर भी
Continue readingजिनकी नज़रों में थे रास्ते और भी- बलबीर सिंह राठी
Post Views: 314 बिरहा गीत बीत चली है सावन रुत भी बीत चली है सावन रुत भी आस नहीं उसके आने की। धीरज मेरा टूट रहा है मन में इक
Continue readingमहेन्द्र प्रताप चांद – बीत चली है सावन रुत भी
Post Views: 302 ग़ज़ल कैसी लाचारी का आलम है यहाँ चारों तरफ़, फैलता जाता है ज़हरीला धुआं चारों तरफ़। जिन पहाड़ों को बना आए थे हम आतिश फ़शां1, अब इन्हीं
Continue readingकैसी लाचारी का आलम है यहाँ चारों तरफ़ – बलबीर सिंह राठी
Post Views: 214 ल्युइस कैरोल (1832-1898) अनुवाद दिनेश दधीचि कैसे नन्हा मगरमच्छ अपनी चमकीली दुम संवारता है। अपने हर सुनहरे शल्क के ऊपर नील नदी का पानी डालता है। देखो, कैसे
Post Views: 267 हरियाणवी कविता जद ताती-ताती लू चालैं नासां तैं चाली नकसीर ओबरे म्हं जा शरण लेंदे सिरहानै धरा कोरा घड़ा ल्हासी-राबड़ी पी कीं काळजे म्हं पड़दी ठंड एक
Post Views: 466 दिवाळी भारतीयों का विशिष्ट त्योहार है। यह रौशनी का त्योहार है, इस लिए ज्ञान का प्रतीक बन गया है जिसकी अज्ञानता पर जीत का जश्न मनाया जाता
Continue readingदिवाली के मिथकीय और लोकधारात्मक संदर्भ – डा. कर्मजीत सिंह अनु- सुभाष चंद्र