Post Views: 199 ज़माने में नया बदलाव लाने की ज़रूरत है, अकीदों का सड़ा मलबा उठाने की ज़रूरत है। उजालों के तहफ्फुज में कभी कोई न रह जाए, अंधेरों को…
गहराई तक जावण म्हं बखत तो लागै सै -रिसाल जांगड़ा
Post Views: 43 हरियाणवी ग़ज़ल रिसाल जांगड़ा गहराई तक जावण म्हं बखत तो लागै सै। सच्चाई उप्पर ल्यावण म्हं बखत तो लागै से। करैग जादां तावल जे उलझ…
एक मधुर सपना था, आख़िर टूट गया
Post Views: 93 महेन्द्र प्रताप ‘चांद’ (वरिष्ठ शायर महेंद्र प्रताप चांद अंबाला में रहते हैं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में लंबे समय तक पुस्तकालय अध्यक्ष रहे। पचासों साल से अपनी लेखनी…
सीली बाळ रात चान्दनी आए याद पिया -कर्मचंद केसर
Post Views: 47 कर्मचन्द ‘केसर’ ग़ज़ल सीळी बाळ रात चान्दनी आए याद पिया। चन्दा बिना चकौरी ज्यूँ मैं तड़फू सूँ पिया। तेरी याद की सूल चुभी नींद नहीं आई,…
रंग तो सबके लहू का लाल है- विक्रम राही
Post Views: 95 विक्रम राही रंग तो सबके लहू का लाल है हड्डियां भी वही हैं वही खाल है। कौम मजहब पर लाता है कौन समझ लीजिए किसकी चाल है…
जहां में खौफ़ का व्यापार क्यूं है सोचना होगा – महावीर ‘दुखी’
Post Views: 35 महावीर ‘दुखी’ जहां में खौफ़ का व्यापार क्यूं है सोचना होगा, तशद्दुद की यहां भरमार क्यूं है सोचना होगा। सुना था आदमी ने बेबसी पर पा लिया…
न दीवानों से वाबस्ता, न फरज़ानों से वाबस्ता -महावीर ‘दुखी’
Post Views: 34 महावीर ‘दुखी’ न दीवानों से वाबस्ता, न फरज़ानों से वाबस्ता, रहा हूं मैं हमेशा आम इन्सानों से वाबस्ता। सुना है देवाओं का कभी था बास धरती पर,…
धरम घट्या अर बढ़ग्या पाप -कर्मचन्द ‘केसर’
Post Views: 50 कर्मचन्द ‘केसर’ ग़ज़ल कलजुग के पहरे म्हं देक्खो, धरम घट्या अर बढ़ग्या पाप। समझण आला ए समझैगा, तीरथाँ तै बदध सैं माँ बाप। सारे चीब लिकड़ज्याँ…
हालात तै मजबूर सूं मैं -कर्मचन्द केसर
Post Views: 35 कर्मचन्द ‘केसर’ ग़ज़ल हालात तै मजबूर सूँ मैं। दुनियां का मजदूर सूँ मैं। गरीबी सै जागीर मेरी, राजपाट तै दूर सूँ मैं। कट्टर सरमायेदारी नैं। कर दिया…
जीन्दे जी का मेल जिन्दगी – कर्मचंद केसर
Post Views: 41 हरियाणवी ग़ज़ल जीन्दे जी का मेल जिन्दगी। च्यार दिनां का खेल जिन्दगी। फल लाग्गैं सैं खट्टे-मीठे, बिन पात्यां की बेल जिन्दगी। किसा अनूठा बल्या दीवा, बिन बात्ती…