Category: कविता

जागो फिर एक बार- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

Post Views: 39 जागो फिर एक बार! प्यारे जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार जागो फिर एक बार! . आँखें अलियों-सी किस मधु की

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बादल राग- सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Post Views: 28 तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुख की छाया जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया यह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से घन,

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विधवा – सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

Post Views: 1,431 विधवा वह इष्टदेव के मन्दिर की पूजा–सी वह दीप-शिखा-सी शान्त, भाव में लीन, वह क्रूर-काल-ताण्डव की स्मृति-रेखा-सी वह टूटे तरु की छुटी लता-सी दीन दलित भारत की

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चिन्ता-जयशंकर प्रसाद

Post Views: 38 चिन्ता करता हूँ मैं जितनी उस अतीत की, उस सुख की: उतनी ही अनन्त में बनती, जातीं रेखाएँ दुख की। आह सर्ग के अग्रदूत! तुम असफल हुए,

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बीती विभावरी – जयशंकर प्रसाद

Post Views: 25 बीती विभावरी जाग री। अम्बर-पनघट पर डुबो रही तारा-घट ऊषा नागरी। खग कुल कुल-कुल-सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा। लो यह लतिका भी भर लाई

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अरुण यह मधुमय देश हमारा – जयशंकर प्रसाद

Post Views: 52 अरुण यह मधुमय देश हमारा! जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा । सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकम

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दोनों ओर प्रेम पलता है – मैथिलीशरण गुप्त

Post Views: 169 दोनों ओर प्रेम पलता है। सखि, पतंग भी जलता है हां! दीपक भी जलता है ! सीस हिलाकर दीपक कहता “बन्धु, वृथा ही तू क्यों दहता ?”

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आंसू- अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Post Views: 20 तुम पड़ो टूट लूटलेतों पर। क्यों सगों पर निढाल होते हो।। दो गला, आग के बगूलों को। आँसुमो गाल क्यों भिगोते हो। आँसुओं और को दिखा नीचा

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फूल और कांटे- अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Post Views: 30 हैं जनम लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता। रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही-सी चाँदनी है डालता। मेंह उनपर

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हत्यारा- मुकेश मानस

Post Views: 19 हत्यारा आता है हत्या करता है और चला जाता है बेफ़्रिकी के साथ बड़ी शान से हत्यारा जाति नहीं पूछता धर्म नहीं पूछता पेशा नहीं पूछता हालात

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