Author: आबिद आलमी

परिचय आबिद आलमी का पूरा नाम रामनाथ चसवाल था। वो आबिद आलमी नाम से शायरी करते थे। उनका जन्म गांव ददवाल, तहसील गुजरखान, जिला रावलपिंडी पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी भाषा साहित्य से एम.ए. किया। वो अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और उर्दू में शायरी करते थे। उन्होंने हरियाणा के भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, गुडग़ांव आदि राजकीय महाविद्यालयों में अध्यापन किया। वो हरियाणा जनवादी सांस्कृतिक मंच के संस्थापक पदाधिकारी थे। उनकी प्रकाशित पुस्तकें दायरा 1971, नए जाविए 1990 तथा हर्फे आख़िर (अप्रकाशित) आबिद आलमी की शायरी की कुल्लियात (रचनावली) के प्रकाशन में प्रदीप कासनी के अदबी काम को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने आबिद की तीसरी किताब हर्फ़े आख़िर की बिखरी हुई ग़ज़लों और नज़्मों को इकट्ठा किया। ‘अल्फ़ाज़’ शीर्षक से रचनावली 1997 और दूसरा संस्करण 2017 में प्रकाशित। आबिद आलमी जीवन के आख़िरी सालों में बहुत बीमार रहे। बीमारी के दौरान भी उन्होंने बहुत सारी ग़ज़लें लिखीं।

मैं घर में हूँ कि सफ़र में, हैं बेक़रार बहुत- आबिद आलमी

Post Views: 159 ग़ज़ल मैं घर में हूँ कि सफ़र में, हैं बेक़रार बहुत तलाश में हैं, परेशां हैं, पहरेदार बहुत अब ऐसे जलसों का चल निकला है रिवाज़ यहाँ

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ज़र्रों को आसमान की जानिब रवाँ करूं- आबिद आलमी

Post Views: 484 ग़ज़ल ज़र्रों को आसमान की जानिब रवाँ करूंयानी फिर इनकलाब की तैयारियां करूं मौजों का साथ मिलने का इमकां है किस कदरकश्ती को बहर-बहर अगर मैं रवां

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रात का वक़्त है संभल के चलो- आबिद आलमी

Post Views: 301 ग़ज़ल रात का वक़्त है संभल के चलो ख़ुद से आगे ज़रा निकल के चलो रास्ते पर जमी हुई है बर्फ़ अपने पैरों पै आग मल के

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ठहरी हुई है रात, अंधेरा है हर तरफ़- आबिद आलमी

Post Views: 180 ग़ज़ल ठहरी हुई है रात, अंधेरा है हर तरफ़टिकते नहीं हैं पाओं कि रस्ता है हर तरफ़ इक ज़हर बस गया है हवा में गली-गलीइक सांप कब

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गर बदल सकता है औरों की तरह चेहरा बदल ले- आबिद आलमी

Post Views: 645 ग़ज़ल गर बदल सकता है औरों की तरह चेहरा बदल लेवरऩा इस बहरूपियों के शहर से फ़ौरन निकल ले हां बहुत नज़दीक है अब इब्तिदा शब के

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होगा नगर में ख़ूब तमाशा गली-गली- आबिद आलमी

Post Views: 174 ग़ज़ल होगा नगर में ख़ूब तमाशा गली-गलीदौड़ेगा जब वो आग का दरिया गली-गली वो एक-इक फ़सील का गिरना नगर-नगरवो इक अजीब शोर का उठना गली-गली जब से

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सीने में आग भी है, नज़र में हवा भी है- आबिद आलमी

Post Views: 153 ग़ज़ल सीने में आग भी है, नज़र में हवा भी हैफिर रेज़ा-रेज़ा मरने से कुछ फ़ायदा भी है दरिया की बात करता है लेकिन य’ पूछ लोलहरों

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उसी तड़प से उसी जोश से चलो यारो- आबिद आलमी

Post Views: 140 ग़ज़ल उसी तड़प से उसी जोश से चलो यारो सवेरा दूर नहीं है चले चलो यारो य’ चूस लेगा हमारे बदन से सारा लहू भला इसी में

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अकेला ख़ुद को समझ कर मैं घर से निकला था- आबिद आलमी

Post Views: 332 ग़ज़ल अकेला ख़ुद को समझ कर मैं घर से निकला था क़दम-क़दम पे मगर क़ाफ़िलों का साथ मिला हमारे शहर के दस्तूर का कमाल है ये न

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जब य’ मालूम है बस्ती की हवा ठीक नहीं- आबिद आलमी

Post Views: 184 ग़ज़ल जब य’ मालूम है बस्ती की हवा ठीक नहींफिर अभी इसको बदल लेने में क्या ठीक नहीं मेरे अहबाब की आंखो में चमक दौड़ गईहंस के

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