न घर में चैन है उसको न ही गली में है-आबिद आलमी
Post Views: 220 न घर में चैन है उसको न ही गली में है,मेरे ख़याल से वो शख्स ज़िन्दगी में है। खटक रहा है निगाहों में आसमां कब सेइसे उठाके
Continue readingन घर में चैन है उसको न ही गली में है-आबिद आलमी
Post Views: 220 न घर में चैन है उसको न ही गली में है,मेरे ख़याल से वो शख्स ज़िन्दगी में है। खटक रहा है निगाहों में आसमां कब सेइसे उठाके
Continue readingन घर में चैन है उसको न ही गली में है-आबिद आलमी
Post Views: 199 घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी जिस्मो-जां कब तकबनाओगे इन्हें अख़बार की यों सुर्खियाँ कब तक यूँ ही तरसेंगी बाशिंदों की खूनी बस्तियाँ कब तकयूँ ही देखेंगी उनकी राह
Post Views: 245 ग़ज़ल जब कहा मैंने कुछ हिसाब तो दे।क्यों फ़रिश्तों की झुक गई आँखें।। इतने ख़ामोश क्यों हैं शहर के लोग।कुछ तो पूछें, कोई तो बात करें॥ अजनबी
Post Views: 391 जब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे।क्यों न हम ख़ुद को ज़रा उबारें आगे।। शहरे हस्ती में तो हम औरों से पीछे थे ही,क़त्लगाहों में भी थीं
Continue readingजब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे -आबिद आलमी
Post Views: 205 ग़ज़ल ये मैंने माना कुछ उसने कहा है, लेकिन क्या !हमारा हाल सब उसको पता है, लेकिन क्या! मेरी सलीब तो रखवा दो मेरे कन्धों पर,कतार लम्बी
Post Views: 163 ग़ज़ल बस्ती के हर कोने से जब लोग उन्हें ललकारेंगेआवाज़ों के घेरे में वो कैसे वक्त गुज़ारेंगे। आख़िर कब तक उसके घर के आगे हाथ पसारेंगे,इक दिन
Continue readingबस्ती के हर कोने से जब लोग उन्हें ललकारेंगे – आबिद आलमी
Post Views: 193 रात का दश्त है जलता है तो जल जाने दोयूँ भी यह राह से टलता है तो टल जाने दो ऐन मुमकिन है कि मिल जाए कोई
Continue readingरात का दश्त है जलता है तो जल जाने दो- आबिद आलमी
Post Views: 115 ग़ज़ल वो जिन्हें हर राह ने ठुकरा दिया है,मंज़िलों को ग़म उन्हीं को खा रहा है मेरा दिल है देखने की चीज़ लेकिनइस को छूना मत कि
Continue readingवो जिन्हें हर राह ने ठुकरा दिया है -आबिद आलमी
Post Views: 166 जो शख़्स तुझ को फरिश्ता दिखाई देता है।वो आईने से डरता सा दिखाई देता है॥ किया था दफ़्न जिसे फर्श के नीचे कल रात,वो आज छत से
Continue readingजो शख़्स तुझ को फरिश्ता दिखाई देता है- आबिद आलमी
Post Views: 161 ख़ला से भी कभी उभरा है ज़िन्दग़ी का वजूदतेरी निगाह कहाँ टकराई है दीवाने!तेरे दिमाग़, तेरे ज़हन पर मसलत हैहसीन उम्रगेज़ सत्ता के चन्द अफ़सानेहवा का झौंक
Continue readingख़ला से भी कभी उभरा है ज़िन्दग़ी का वजूद – आबिद आलमी