Post Views: 127 न घर में चैन है उसको न ही गली में है, मेरे ख़याल से वो शख्स ज़िन्दगी में है। खटक रहा है निगाहों में आसमां कब से…
न घर में चैन है उसको न ही गली में है-आबिद आलमी
Post Views: 203 न घर में चैन है उसको न ही गली में है, मेरे ख़याल से वो शख्स ज़िन्दगी में है। खटक रहा है निगाहों में आसमां कब से…
घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी जिस्मो-जां कब तक – आबिद आलमी
Post Views: 134 घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी जिस्मो-जां कब तक बनाओगे इन्हें अख़बार की यों सुर्खियाँ कब तक यूँ ही तरसेंगी बाशिंदों की खूनी बस्तियाँ कब तक यूँ ही देखेंगी…
घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी जिस्मो-जां कब तक -आबिद आलमी
Post Views: 185 घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी जिस्मो-जां कब तक बनाओगे इन्हें अख़बार की यों सुर्खियाँ कब तक यूँ ही तरसेंगी बाशिंदों की खूनी बस्तियाँ कब तक यूँ ही देखेंगी…
रात का वक़्त है संभल के चलो-आबिद आलमी
Post Views: 160 ग़ज़ल रात का वक़्त है संभल के चलो ख़ुद से आगे ज़रा निकल के चलो रास्ते पर जमी हुई है बर्फ़ अपने पैरों पै आग मल के…
रात का वक़्त है संभल के चलो- आबिद आलमी
Post Views: 190 ग़ज़ल रात का वक़्त है संभल के चलो ख़ुद से आगे ज़रा निकल के चलो रास्ते पर जमी हुई है बर्फ़ अपने पैरों पै आग मल के…
जब कहा मैंने कुछ हिसाब तो दे -आबिद आलमी
Post Views: 230 ग़ज़ल जब कहा मैंने कुछ हिसाब तो दे। क्यों फ़रिश्तों की झुक गई आँखें।। इतने ख़ामोश क्यों हैं शहर के लोग। कुछ तो पूछें, कोई तो बात…
जब कहा मैंने कुछ हिसाब तो दे – आबिद आलमी
Post Views: 224 ग़ज़ल जब कहा मैंने कुछ हिसाब तो दे। क्यों फ़रिश्तों की झुक गई आँखें।। इतने ख़ामोश क्यों हैं शहर के लोग। कुछ तो पूछें, कोई तो बात…
जब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे – आबिद आलमी
Post Views: 166 जब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे। क्यों न हम ख़ुद को ज़रा उबारें आगे।। शहरे हस्ती में तो हम औरों से पीछे थे ही, क़त्लगाहों में…
जब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे -आबिद आलमी
Post Views: 374 जब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे। क्यों न हम ख़ुद को ज़रा उबारें आगे।। शहरे हस्ती में तो हम औरों से पीछे थे ही, क़त्लगाहों में…