जय सिंह खानक

जय सिंह खानक

जिला भिवानी के खानक गांव निवासी। 30 जनवरी, 1963 में जन्म। रागनी लेखन और गायन में रुचि। कर्मचारी आन्दोलन के मुद्दे रागनियों का प्रमुख विषय। वर्तमान में राजकीय विद्यालय, तोशाम में इतिहास के प्राध्यापक।

1
हो लिया देश का नाश, आज ये मोटे चाळे होगे
ना सही व्यवस्था आज देश मैं, हालात कुढ़ाळे होगे
 
निजीकरण और छटणीं की या पूरी तैयारी करली
कई महकमें बेच दिये कईयां की तैयारी करली
सर्विस करणिये लोगां की, घर भेजण की तैयारी करली
बिना बताए घर नै भेजैं, मारण की तैयारी करली
या तेग दुधारी गर्दन पर धरली, इसे काटण आळे होगे
 
धंधे खत्म करे सारे, जनता की किस्मत फोड़ैं सैं
रोज लगावैं नए टैक्स, जनता की गर्दन तोडै़ं सैं
कदे बिजली बिल कदे किराये, ये रोजे सिरनै फोड़ैं सैं
खाद बीज के दाम बढ़ाकै, किसानां की कड़ तोडैं सै
ये सबका ए सिर फौडैं सैं, इसे लुटण आळे होगे
 
विदेशी कर्जा बढ़्या देश पै, या हालत खारी होगी
कोण चुकावै इस बढ़े कर्ज नै या खास बिमारी होगी
ना शिक्षा ना स्वास्थ्य देश मैं, या घणी लाचारी होगी
गरीबां नै ना मिलै मजदूरी, न्यू ठोकर खाणी होगी
कानून व्यवस्था ठप्प होगी, मरणे के ढ़ाळे होगे
 
कदे हवाले कदे घोटाले, एक परथा नई चला दी
लूट-लूट के पूंजी सारी, विदेशां मैं जमा करादी
निजीकरण और छंटणी की, एक नइये चाल चला दी
सरकार महकमें बेच रही, या किसनै बुरी सलाह दी
या नींव देश की हिला दी, कोण डाटण आळे होगे
 
लोक सभा और विधान सभा म्हं, जा बैठे हत्यारे
जो करैं व्यवस्था खत्म देश की, और फोड़ैं कर्म हमारे
रळ मिलके नै संगठन करल्यो, आगै होकै सारे
इन चोर, लुटेरे बदमाशां तै, मिलके लड्ल्यो सारे
कहै मा.जयसिंह खानक आळा न्यूए झगड़े झोणे होंगे
 

2

 
अमेरिका तू अकडै़ दिखावै, या मरोड़ काढ़द्यां सारी
हो तेरी द्यांगे मेट बिमारी
 
कोणसी तेरै बिमारी सै, या सारा चैकअप कर ल्यांगे
नस-नस के म्हां घुसकै नै, तैयार कैप्शूल कर ल्यांगे
फेरभी तू ना ठीक हुआ तो, हम सर्जरी कर द्यांगे
रळ मिलकै  नै संगठन करके, ऑपरेशन तेरा कर द्यांगे
जिंदगी भर कदे बोलै कोनी, तेरे मुंह पै ताळा जड़ द्यांगे
जितनी दादागिरी करी सै, हम मिलकै  बदला ले ल्यांगे
तनै दुनियां म्हं तै खो द्यांगे, फेर धाक जमैगी म्हारी
 
मानवता का दुशमन होर्या, तनै शर्म कती ना आवै सै
आपे घणे हथियार बणावै, औरां नै, सबक सिखावै सै
कट्ठीकरके बारूद सारी, झुट्ठा रोब जमावै सै
कदे भी चुप बेठै कोनी, तनै रोज शैतानी सुझै सै
जब चाहवै तू हमला करदे, ना राष्ट्र संघ बुझै सै
अरब, कोरिया और लीबिया, तनै रोज लड़ाई सुझै सै
तु किसे तै ना बुझै सै, के तेरी मती गई सै मारी
 
पर्यावरण, प्रदुषण भी तू, सबतै ज्यादा करर्या सै
बम धमाके करके नै तू, घोर अंधेरा करर्या सै
दुनिया के जितने संसाधन, तू सबपै कब्जा करर्या सै
हथियारां की होडै़ लगाकै, तू शीत युद्ध करवार्या सै
विकास नाम की चीज नहीं, यो आम आदमी मरर्या सै
तू लूट-लूट के पूंजी सारी, तू अपणे घरनै भरर्हया सै
क्यूं बुराई सिरपै धरर्या सै, ना जान बचैगी तेरी
 
लाचार और गरीबां नै, तू रोजे धमकी देवै सै
बर्ड-वार तीसरा होज्या, तू घणे इसारे देवै सै
इबकै जान बचै कोनी क्यू स्वयं बावला होवै सै
अफ्रीका और एशिया मिलकै, तेरी सारी चमड़ी पाड़ैंगे
पिछला बदला लेवण खातर, तेरा सारा नक्शा-झाडै़ंगे
किते का भी छोडैं कोन्या, तनै दुनियां मै तै ताडैग़ें
तनै रळ मिलकै  नै पाडै़ंगे, यो कह जयसिंह प्रचारी
 

3

नैतिकता ना रही किसे म्हं, यो समाज उघाड़ा होग्या रै
शरीफ आदमी नै ना जीवन दे, यो जी नै खाड़ा होग्या रै
 
चोर लुटेरे बदमाशां की, चारों तरफ नै धूम मची
गलियां के म्हां भय छाया, दिन रात नशे की झूम मची
शरीफ आदमी कितकै लिकडै़, या बदमांशां की झूम मची
चोरी-जारी लूट-खसूट की, चोगरदै हकूम मची
ना कोए जगह महफूज बची, यो ऊतां का खाड़ा होगा रै
 
लिहाज शर्म कती तार बगादी, शर्म का खोज रह्या कोन्या
पास-पड़ौसी के लागै किसका, भाई मैं प्यार रह्या कोन्या
चाचा-ताऊ, भाई-भतीजा, कोए रिस्ता खास रह्या कोन्या
यारी दोस्ती खत्म हुई, कोए सच्चा मीत रह्या कोन्या
कोए माणस खास रह्या कोन्या, भुतां का बाड़ा होग्या रै
 
नैतिकता का दम भरणे आळे, खुद हैवान हमें देखे
झूठ-लूट-खसूट मचावैं, इसे भगवान हमें देखे
पंचायतां मैं झूठ बोलते, इसे शैतान हमें देखे
धोंस जमावैं कमजोरां पै, इसे बलवान हमें देखे
ये घटिया चाल-चलण देखे यो इसा पुवाड़ा होग्या रै
 
कदम-कदम पै धोख्यां की, एक बिसात बिछा राखी सै
खोद-खोद के गहरी खाई, पत्तां तै ढ़क राखी सै
रंग-बिरंगें फूल सजाकै, इत्र छिड़क राखी सै
घरक्यां नै भी शिकार बणांले, ना छोड़ कसर राखी सै
ना कोए कसर बाकी सै जयसिंह, यो इसा बखेड़ा होग्या
 

4

उठ सुबह अखबार पढूं, मैने चक्कर सा आवै सै
अपराध जगत का भर्या पड़्या ना कोए सही खबर पावै सै
 
लूट-खसूट मची दुनिया मैं, यें आपस मै गळ काटैं
भाई-भाई कटके मर रहे, ये मेल करण तै नाटैं
बाबु बेटा देवैं गवाही, होटल मैं पत्ते चाटैं
ये ईज्जत खातर सिर काटैं, या रोज खबर पावै सै
 
फ्रैंट पेज पै ये बड़े घोटाले, ये रोज छपे पावैं सै
पांच-सात दिन रह रोला, फिर एकदम छिप जावैं सै
सी.बी.आई. न छापे मारे, या रोज सुणी जावैं सै
एकदम फाईल गुम होजा, ना ढुंढा तै पावैं सै
या बेराना कडै़ जावै सै, ना बात समझ आवै सै
 
नेता और अभिनेता नै, या लूट मचा राखी सै
इाम आदमी ना समझै, इसी चाल चला राखी सै
नियम-कानून उड़े सारे, इसी हवा चला राखी सै
अखबार बणे साथी उनके, इसी रीत चला राखी सै
ना छोड़ कसर राखी सै, देश यो कित जांणा चाहवै सै
 
दंगां मै घणें लोग मरैं, जब इन्हें बड़ी खबर पावैं सै
10-20 मरै लाठी-चार्ज मैं, जब इन्हें बड़ी खबर पावैं सै
तंगी मै करैं कुणबा घाणी, ये रोज छपी पावै सैं
ना मिलै दहेज तो हत्या करदें, ये खबर छपी पावैं सै
ये इसी खबर क्ंयूँ लावै सै, क्यूँ जनता नै बहकांवैं सै
 
 
जो छपणी थी वा नहीं छपी, ना छपणी थी वा छपगी
इन बेहुदी खबरां नै सुण-सुण, या जनता सारी छकगी
अपहरण चौरी, डाकां की तो, ये सारी खबरें छपगी
जनता के मुद्दे नहीं छपे, या कह-कह दुनियाँ खपगी
कहै मा.जयसिंह ये पत्रकार भी, ना सही खबर लावै सै
 

5

या दुनियाँ झुलसी सारी, इस मंहगाई की आग मैं
या दुनियाँ..
 
हल्दी, लाल मिर्च के भाव तै, लोगां के चेहरे लाल हुऐ
मिर्च-रोट खावणिये भी, भा सुणके नैं बेहाल हुऐ
ये लाला माला-माल हुऐ, इस मंहगाई के बाग मैं
या दुनियाँ..
 
दाल और चीनी चढ़े आस्माँ, ओर भी चढ़ते जावैं सै
घर का बजट बिगड़ग्या सारा, पैंधरबारी मरते जावैं सै
ये घुट-घुट के बतलावैं सैं, कहैं आग लगीम्हारे भाग मैं
या दुनियाँ..
 
घी और तेल का हाल बुरा, चिकनाई खत्म हुई सारी
दुध कम और पानी ज्यादा, मलाई खत्म हुई सारी
कहैं किस्मत फुटी म्हारी, इस कांग्रेस कै राज मैं,
या दुनियाँ..
 
सब्जी-फल ना देखण पांवां, ये इसे कसुते हाल हुऐ
दवा-दारू ना मिल टेम पै, सब तरियाँ तै काल हुऐ
कमेरां के बुरे हाल हुऐ, इस पूंजीवाद दाग मैं
या दुनियाँ..
 
सही वक्त पै ना चुल्हा बलता, इस मकंहगाई की मार मैं
सपने और अरमान बह गऐ, इस भ्रष्टाचार की धार मैं
यो जयसिंह रहा हार मै, क्यू विश्वास करा इसे त्याग मैं
या दुनियाँ..
 

6

सदियों से हम पिसते आये, ना दिया सम्मान क��सेनै
नीच, गलीच, मलीच कहं, ना समझे इंसान किसेनै
 
दलित होंणके के के दुख, यो हाल सुणादुं सारा
किते भी ना मिलती इज्जत, हर जगह गया फटकारा
मन्दिर, मस्जिद मै नां घुसण दिये, या कोणसा दोष हमारा
इक्कीसवीं सदी आगी, आज भी म्हारा कुआं न्यारा
सदियों से फिरै मारा-मारा ना दी पहचान किसेनै
नीच-मलीच-गलीच…
 
नऐ-नऐ नाम रोज मिलैं, जो गिनती मैं ना आवैं
सुण-लुण के दिल छलणी होज्या, मरहम भी ना पावैं
अपणा रोब बढ़ावण नै, ये चुटकले रोज बणावैं
चीर कलेजा पार लिकड़ज्या, शब्दां के तीर चलावैं
हम मशोक कालजा चुप रहज्यावा, ना देवां उल्टा ब्यान किसेनै
नीच-मलीच-गलीच…
 
पढ़ण लिखण का अधिकार दिया ना, एके अधिकार दिया हमनै
पैर पकड़ म्हारी सेवा करल्यो, एक शुद्र नाम दिया हमनै
म्हारे खेतां मैं करो मजदूरी, बस योहे काम दिया हमनै
मल-गोबर की करो सफाई, और झाडू थमा दिया हमनै
यो कोणसा जुर्म हामनै, ना करा बख्यान किसने
नीच-मलीच-गलीच…
 
किसे चीज मैं सीर नहीं म्हारा, ना कोई हिस्सेदारी
दर-दर ठोकर खाते फिररे, फेर ना मजदूरी थ्यारी
लोग कहैं इन्हें देश लूट लिया, ना म्हारी समझ मैं आरी
महिने मैं दस दिन काम मिलै, बस या पूंजी सै म्हारी
या आधी दुनियाँ ढंग़ के खारी, ना कही शैतान किसेनै
नीच-मलीच-गलीच…
 
सदियों तक गुलाम रहे, म्हारा रहा नरक मैं जीणां
बिना दुध की चाय पीवैं बालक, यो म्हारा खाणा-पीणां
सुके टिकडै़ मिर्च घणी, ना देखा दूध और घीणां
365 लगी बितारी और, शरीर का होग्या झीणां
यो जीणा के जीणा जयसिंह, ना समझे अरमान किसेनै
नीच-मलीच-गलीच…
 
 

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