हरियाणा का हाल

अरुण कुमार कैहरबा

हरि के हरियाले प्रदेश हरियाणा का हाल सुणो,
खरी-खरी कड़वी-सी बात और चुभते हुए सवाल सुणो।

दूध-दही के खाणे वाला मीठा-मीठा गीत कहां सै,
मिल-बैठ कै, बांट-बांट के खाणे वाली रीत कहां सै,
अन्न के घणे भंडारा मैं भूखे बिलखते बालक क्यूं सैं,
भूखों का भी लहू चूसते घणे सयाणे मालक क्यूं सैं,
उत्पीडि़त लोगों के मन मैं उठदा होया भूचाल सुणो।
हरि के हरियाले प्रदेश हरियाणा का हाल सुणो।

गोत-खाप की पंचायतों की गुंडागर्दी बढ़दी जारी,
इनके फतवों-फरमानों से प्रेमी जोडिय़ां मरदी जारी,
पग्गड़धारी सामंत जात के लिखवारे इतिहास खाप का,
हरियाणा के लाल समझरे खुद नैं दादा अपणे बाप का,
बढऩा तो आगे चाहिए था, पिछडऩ का मलाल सुणो।
हरि के हरियाले प्रदेश हरियाणा का हाल सुणो।

नारी पूजणिये समाज मैं, बेटा-बेटी फरक क्यूं होरया,
बेटे की चाह मैं बाबों के आगै माथा पटक क्यूं होरया,
बोझ समझ कै लडक़ी नै उसका जीवन नरक क्यूं होरया,
कन्या भ्रूण हत्या क्यूं होरी, इतना बेड़ा गरक क्यूं होरया,
बेटी के दुश्मन समाज की पाखंडी सी चाल सुणो।
हरि के हरियाले प्रदेश हरियाणा का हाल सुणो।

बात जात की इतनी बढग़ी, सारे रस्ते रोक दिए,
भाईचारे पै नाके ला दिए, मूछां के खूंटे ठोक दिए,
राजनीति नै मजे लिए तब अपणे प्यादे झोंक दिए,
प्रशासन सब रह्या देखदा, छूरे पै छूरे घोंप दिए,
क्यों होई या जात की जंग इसकी भी पड़ताल सुणो।
हरि के हरियाले प्रदेश हरियाणा का हाल सुणो।

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर 2016 से फरवरी 2017, अंक-8-9), पेज- 113
 
 

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