जे कवि हो, अर थारो घर चिमका मारै कोई जी-जिनावर बठै आसरो कोन लेय सकै थे टांटियां'गा छत्ता तोड़ो, माकड़ मारो, कबूतर उडाओ भई अ बीन्ठ न करदे आलणो बणावती चिड़ी उडाओ तो म्हनै थारै कवि होण पर संदेह है
घर म्ह
घर म्ह एक कोठो तो इस्यो होणो ई चाईजै जठै चिड़ी आलणो कर सकै टांटिया अर भिरडां छत्ता बणाय सकै माकड़ जाळा कर सकै अर गिलारी जठै इंडा देयर बच्चा पाळ सकै
1 thought on “एस.एस.पंवार की पांच हरियाणवी-राजस्थानी कविताएं”
सौणी कवितावां. आपणी मां बोली सबतै प्यारी.