एक चुप्पी -जयपाल

सवेरे-सवेरे
एक हाथ में टोकरी
दूसरे में झाडू
वह निकल पड़ती है घर से
जाती है एक घर से दूसरे घर
एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले
कुछ दौड़ती है
कुछ भागती है
कुछ हंसती है
कुछ रोती है
करती है मजाक तरह तरह के
सुनाती है किस्से यहां-वहां के
लगता है सब कुछ कह जाती है
लगता है सब कुछ सुन जाती है
फिर भी एक खास तरह की चुप्पी
उसके चारों तरफ हमेशा मौजूद रहती है
इसी चुप्पी में मौजूद रहता है
उसका अतीत, वर्तमान और भविष्य

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