अमल करे सो पाई – कबीर

साखी – कहंता1 तो बहुत मिला, गहंता2 मिला न कोय।
सो कहंता बहि जान दे, जो न गहंता होय।।टेक
अमल करे सो पाई रे साधो भाई अमल करे सो पाई।
जब तक अमल नशा नहीं करता, तब लग मजा न आई।।
चरण – आन्दो2 आप लिए कर दीपक, कर परकास दिखाई।
औरन आगे करे चांदनी, आप अंधेरा मांई।।
आन्दो हाथ अन्दर नहीं दरसे, जग में भलो कहाई।
दूत पूत का दानी रे बनकर, पाखंड पेट भराई।।
काजी पंडित पच पच हारे बेद कुराण के मांई।
भणिया  गुणिया ये नहीं समझे, याने कुण4 समझाई।।
गुरु शरणों में माली लिखे लेखणो, सब संतन के मांई।
है कोई ऐसा फक्कड़ जग में, अपना अमल जमाई।।

  1. कहने वाला 2. कहे पर चलने वाला 3. अंधा 4. कौन

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